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भारतमहाराष्ट्र भीमाशंकर मंदिर पुणे के निकट एक प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग

हिन्दू धर्म में पुराणों के अनुसार कुल बारह ज्योतिर्लिंग हैं जिनमें से तीन ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र में स्थित हैं। भीमाशंकर मंदिर उन तीन ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कुछ वर्षों पूर्व जब मैं पुणे नगर में प्रशिक्षण ले रही थी, उस समय मैंने इस मंदिर के दर्शन किये थे। हमारा मुख्य लक्ष्य मंदिर दर्शन नहीं, अपितु पर्वतारोहण था। किन्तु वर्त्तमान में, मेरे उस अभियान की स्मृतियों में केवल मंदिर तथा समीप स्थित एक नदी स्पष्ट रूप से शेष है।

१.भीमाशंकर ज्योतिर्लिंगा मंदिर

महाराष्ट्र राज्य अनेक प्राचीन मंदिरों की विरासत से समृद्ध है। विभिन्न हिन्दू ग्रंथों में भी इन मंदिरों का उल्लेख किया गया है। उनमें कुछ अत्यंत लोकप्रिय तीर्थ स्थान हैं, जैसे कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर, पंचवटी नासिक में तुलजापुर भवानी, घृष्णेश्वर मंदिर, अष्ट विनायक मंदिर इत्यादि।

भारत में पसरे १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक, भीमाशंकर मंदिर महाराष्ट्र ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण भारत के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। आईये मैं आपको इस मंदिर के दर्शन कराती हूँ तथा इसके आसपास के सुन्दर परिदृश्यों से आपको अवगत कराती हूँ। साथ ही इसके इतिहास को जानने का प्रयास करते हैं तथा इससे सम्बंधित कथाओं का आनंद उठाते हैं।

२. भीमाशंकर मंदिर कहाँ स्थित है?

भीमाशंकर मंदिर महाराष्ट्र के पुणे नगरी से लगभग ११० किलोमीटर तथा खेड़ तालुका से 50 किलोमीटर दूर स्थित है। भौगोलिक दृष्टी से यह मंदिर सह्याद्री पर्वत श्रंखलाओं में स्थित पश्चिमी घाटों की गोद में आसीनस्थ है। भीमाशंकर भीमा नदी का उद्गम स्थल भी है जो आगे कावेरी नदी में विलीन हो कर बंगाल की खाड़ी तक जाती है, जहां समुद्र से उसका संगम होता है। भीमा नदी चंद्रप्रभा भी कहलाती है।

३.भीमाशंकर मंदिरउत्कीर्णित शिल्प


पश्चिमी घाटों में स्थित होने के कारण इस मंदिर तक पहुँचने के लिए चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। यहाँ तक पहुँचने के लिए सुविधाजनक सड़क मार्ग भी हैं किन्तु हमारा ध्येय पर्वतारोहण करते हुए मंदिर तक पहुँचने का था। चारों ओर सघन वन के अप्रतिम प्राकृतिक दृश्यों से सराबोर यह अत्यंत मनमोहक रोहण अनुभव है। किन्तु जंगली जानवरों से सावधान रहने की भी आवश्यकता है। भीमाशंकर तक का पर्वतारोहण युवाओं में अत्यंत लोकप्रिय है। इसमें पठारों पर लम्बी दूरी तक चलना, चिकनी चट्टानों पर चढ़ना तथा जीर्ण हो चुकी सीढ़ियों पर चढ़ना इत्यादि भी सम्मिलित हैं। वर्षा ऋतु में सघन कोहरे की संभावना रहती है तथा सम्पूर्ण प्रकृति रहस्यमयी धुंध से ढँक जाती है।

४. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग

भारत की पावन भूमि में बारह ज्योतिर्लिंग है। आदि शंकराचार्यजी ने सभी बारह ज्योतिर्लिंगों के नामों को एक श्लोक में पिरोया है तथा उसमें उनके स्थानों की जानकारी दी है। उस श्लोक में उन्होंने भीमा नदी के उद्गम पर स्थित भीमाशंकर मंदिर के विषय में इस प्रकार उल्लेख किया है, ‘डाकिन्यां भीमशंकरम्’। यह महाराष्ट्र राज्य का सौभाग्य है कि १२ में से ३ ज्योतिर्लिंग इस राज्य में हैं। ज्योतिर्लिंग भगवान शिव का स्वयंभू रूप है। अन्य दो ज्योतिर्लिंग हैं, नासिक में गोदावरी नदी के उद्गम स्थल पर स्थित त्र्यम्बकेश्वर तथा घृष्णेश्वर, जो वेलुर में स्थित है, जिसे अब हम एलोरा कहते हैं।

५. भीमाशंकर मंदिर की लोककथाएं

इस मंदिर से सम्बंधित सर्वाधिक लोकप्रिय दंतकथा उसे त्रिपुरासुर से जोड़ती है। त्रिपुरासुर अत्यंत शक्तिशाली हो गया था तथा तीनों लोकों की शांति के लिए एक विशाल संकट बन चुका था। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने यहीं उसका अंत किया था। त्रिपुरासुर का वध करने के पश्चात भगवान शिव कुछ क्षण विश्राम करने के लिए यहीं बैठ गए थे। उनकी देह से स्वेद की धारा बह रही थी। वही धारा धरती पर बहने लगी तथा भीमा नदी बन गयी।

भीमा

एक अन्य लोककथा के अनुसार, भीमा नामक एक असुर इन्ही वनों में निवास करता था जहाँ भीमाशंकर मंदिर स्थित है। वह श्रीलंका एवं कर्कटी के प्रसिद्ध राजा रावण के भ्राता, कुम्भकर्ण का पुत्र था। जैसे ही भीमा को ज्ञात हुआ कि श्री राम एवं रावण के मध्य हुए युद्ध में उसके पिता की मृत्यु हो गयी है, वह क्रोधित हो गया। प्रतिशोध की अग्नि में जलते हुए उसने ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। भीमा की निष्ठा व समर्पण से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उसकी अभिलाषा पूर्ण की तथा उसे सर्व पुरुषों में सर्वाधिक शक्तिशाली पुरुष बना दिया।

श्री हनुमान की पूजा करती एक भक्त


वरदान पाकर भीमा अधिक उद्दंड हो गया तथा अपना प्रतिशोध आरम्भ कर किया। सर्वप्रथम उसने देवराज इंद्र को परास्त कर किया। तत्पश्चात कामरुपेश्वर अर्थात् राजा प्रियधर्मन को परास्त किया जो भगवान शिव का परम भक्त था। कारागृह में बंदी बनने के पश्चात भी राजा प्रियधर्मन ने शिव स्तुति नहीं छोड़ी तथा अनवरत शिवलिंग की पूजा-अर्चना करता रहा।

भीमा चाहता था कि कारागृह में बंदी राजा प्रियधर्मन उसकी स्तुति करे। जब राजा ने भीमा का आदेश स्वीकार नहीं किया तब भीमा ने अपनी तलवार से लिंग पर प्रहार किया। उसी क्षण लिंग से भगवान शिव प्रकट हुए तथा उनके एवं भीमा के मध्य भीषण युद्ध आरम्भ हो गया। शिव ने भीम को परास्त कर उसे भस्म में परिवर्तित कर दिया। सभी देवताओं ने भगवान शिव की स्तुति की तथा उनसे आग्रह किया कि वे शिवलिंग के रूप में वहीं विराजमान हों। अब उसी स्थान पर चारों ओर सुन्दर पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा भीमाशंकर मंदिर है।


इस स्थान पर शाकिनी एवं डाकिनी का भी निवास है, जिन्होंने भीमा को परास्त करने में शिव की सहायता की थी।

भीमाशंकर मंदिर का आकार एक रथ के समान है इसलिए इसे रथचला भी कहते हैं।

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मंदिर के समक्ष रोमन शैली का एक विशाल घंटा है जिस पर जीसस एवं माँ मैरी की छवियाँ उत्कीर्णित हैं। उस पर वर्ष १७१२ ई भी चिन्हित है। यह घंटा बाजीराव पेशवा प्रथम के भ्राता तथा नाना साहेब पेशवा के काका, चिमाजी अप्पा ने इस मंदिर को भेंट चढ़ाया था। वसई दुर्ग पर आधिपत्य करते पुर्तगालियों को युद्ध में परास्त कर वे उस दुर्ग से पांच विशाल घंटे लेकर आये थे। उन्होंने ये पांच घंटे पांच विभिन्न शिव मंदिरों में चढ़ाए थे। उनमें से एक घंटा इस मंदिर में भी अर्पित किया था।

वन्यजीव संरक्षण क्षेत्र
श्री भीमाशंकर वन्यजीवन अभ्यारण्य

मंदिर के चारों ओर, लगभग १३० वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र एक संरक्षित वनीय क्षेत्र है। इस क्षेत्र को सन् १९८५ में वन्यजीव संरक्षण क्षेत्र घोषित किया गया था। अधिकारिक रूप से इसे श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग वन्यजीव अभ्यारण्य कहा जाता है। यहाँ की विशेषता है, बड़ी गिलहरी, जो महाराष्ट्र का राज्य पशु है। उसे स्थानीय मराठी भाषा में शेखरू कहते हैं। यूनेस्को विश्व विरासत स्थलों की सूची में सम्मिलित पश्चिमी घाट विविध जैव-विविधता हॉटस्पॉट है। आप यहाँ विविध प्रकार के वनीय पशु एवं पक्षियों के विभिन्न प्रजातियाँ देख सकते हैं, जैसे तेंदुआ, हिरन, सांभर, गीदड़, बन्दर तथा अनेक प्रकार की तितलियाँ।

यहाँ विभिन्न प्रकार की वृक्षवाटिकाएं हैं जो इस क्षेत्र की जैव-विविधता में संतुलन बनाए रखने में सहायक हैं।


मंदिर के आसपास अन्य दर्शनीय स्थल हैं, भीमा नदी का उद्गम स्थान, गुप्त भीमाशंकर, भोरगिरी दुर्ग, नाग फणी, बॉम्बे पॉइंट तथा साक्षी विनायक का मंदिर।

कमलजा देवी मंदिर हमें प्रकृति की आराधना का स्मरण कराती है।

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कैसे पहुंचें?

भीमाशंकर मंदिर पहुँचने के लिए आप मुंबई अथवा पुणे से सार्वजनिक अथवा निजी सड़क परिवहन की सेवायें ले सकते हैं।
आप यहाँ स्थानीय धर्मशाला में ठहर सकते हैं। किन्तु इसके लिए आपको पुरोहितजी को पूर्व सूचना देना आवश्यक है।
मंदिर प्रातः ५ बजे से रात्रि ८ बजे तक खुला रहता है।
इस मंदिर के दर्शन एवं आसपास के स्थलों के भ्रमण हेतु शीत ऋतु का समय सर्वोत्तम है जब यहाँ का वातावरण अत्यंत सुखमय होता है। ग्रीष्म ऋतु की तीक्ष्ण समयावधि जितना हो सके टालने का प्रयास करें। वर्षा ऋतु में यहाँ का परिदृश्य अत्यंत सुन्दर हो जाता है किन्तु उस समय यहाँ पहुँचने के लिए केवल सड़क मार्ग का ही प्रयोग करें। वर्षा ऋतु में पर्वतारोहण जोखिम भरा होता है, अतः टालने योग्य है